
पौड़ी : जिले में आजकल चुनावी सरगर्मी जोरों पर है। प्रत्याशी गांव-कस्बों में घर-घर जाकर प्रचार में जुटे हैं। क्षेत्रवासियों से बड़े-बड़ वादे किए जा रहे हैं, लेकिन हैरानी की बात है कि सबकी जुबां से पलायन का मुद्दा गायब है। प्रदेश में अल्मोड़ा के बाद पौड़ी दूसरा ऐसा जिला है जो सबसे ज्यादा पलायन का दंश झेल रहा है। जिले के ग्रामीण इलाके आज भी मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर हैं।
जनपद में बुनियादी सुविधाओं और रोजगार, स्वास्थ्य, शिक्षा के अभाव में लगातार पलायन जारी है। जो परिवार गांवों में अभी रह रहा है वो भी जंगली जानवरों के आतंक से त्रस्त है। पलायन आयोग एवं ग्राम्य विकास की रिपोर्ट पर गौर करें तो जनपद की 1212 ग्राम पंचायतों में किए गए सर्वे में 1025 ग्राम पंचायतों में पलायन बढ़ा है। 1025 ग्राम व तोकों में 47 हजार से अधिक ग्रामीण पलायन कर चुके हैं। पंद्रह विकासखंडों वाले पौड़ी जनपद में पिछले सात-आठ सालों में 186 गांव व तोक गांव वीरान हुए। ऐसे में एक तरफ से देखा जाए तो जनपद के करीब-करीब हर ब्लाक पलायन के दौर से गुजरा।
चकबंदी आंदोलन के प्रणेता गणेश गरीब, सामाजिक कार्यकत्र्ता, जसपाल रावत, जगमोहन डांगी बताते हैं कि जनपद के कई गांव पलायन से खाली है तो कई खाली होने की कगार पर हैं। वे कहते हैं कि पलायन रोकने की बात तो होती है लेकिन बाद में इसे धरातल पर साकार करने की ठीक से पहल नहीं होती है। दुर्भाग्यपूर्ण है कि यह आज तक किसी भी दल या प्रत्याशी ने पलायन को अपना चुनावी मुद्दा नहीं बनाया।